वीर तोगा जी राठौड़ : जिनका सर कटने पर भी धड़ मुगल सेना से लड़ता रहा।
भारत की भूमि वीरयोद्धाओ की भूमि है, यहां वीर अपनी मातृभूमि के लिए, अपने स्वामी के सम्मान के लिए हमेशा लड़ने या मरने के लिए तैयार रहते हैं। आज हम राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में ऐसे ही वीर योद्धा के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपने राजपुताने के गौरव के लिए खुशी खुशी अपने जीवन का बलिदान कर दिया। एक ऐसा योद्धा जिसका सिर कटने पर भी धड़ लड़ता रहा और मुगल सेना एवम मुगल बादशाह को भयभीत करता रहा, ऐसे वीर योद्धा का नाम है तोगा जी राठौड़। आइए जानते हैं -
प्रसंग है सन 1656 का इस समय मुगल बादशाह शाहजहां था और जोधपुर में महाराजा गजसिंह द्वितीय का शासन था।
इस वक्त शाहजहां आगरा में आया हुआ था, एक दिन उसने आगरा का दरबार लगाया , सभी अमीर उमराव और खान दरबार में आए।
तभी शाहजहां ने सभा में देखा कि दरबार में 62 अमीर उमराव है और 60 खान है, तो उसने सभी दरबारियों से पूछा ऐसा क्यों कि अमीर उमराव 62 है और खान 60, मुझे आप अभी इस प्रश्न का उत्तर दीजिए।
सभी दरबारी एक - दूसरे की ओर देखने लगे , और सोचने लगे इसका क्या उत्तर दे तभी दक्षिण का सूबेदार मीर खान खड़ा हुआ और उसने शाहजहां से कहा कि हुजूर राजपूतों में खान से दो विशेषता अधिक है एक तो ये कि युद्ध में उनका सर कटने पर भी धड़ लड़ता रहता है और दूसरी ये कि जब राजपुत वीर युद्ध में विरगति को प्राप्त हों जाते हैं तो उनकी पत्नी सती हो जाती है।
यह बात सुनकर शाहजहां चुप हो गया या यूं कहें की राजपूतों की वीरता उसे सुहाई नहीं , फिर थोड़ी देर बाद उसने मीर खान से कहा कि मैं ये दोनों नजारे देखना चाहता हूं और इसके लिए आपको 3 महीने का समय देता हूं, और यदि आप अपनी बात सिद्ध नही करपाते हैं तो आपको मृत्यु दण्ड दिया जाएगा और दरबार में अमीर उमराव की संख्या भी कम कर दी जाएगी।
अब शाहजहा की यह बात महाराज गजसिंह द्वितीय को भी खटक गई कि दरबार में अमीर उमराव की संख्या कम कर दी जाएगी। उन्होंने मीर खान को सहायता का आश्वासन दिया।
मीर खान पूरे राजपुताने में घूमा लेकिन उसे कही मदद नहीं मिली अब वह फिर महाराज गजसिंह द्वितीय के पास पहुंचा और कहा महाराज सहायता कीजिए, मैं पूरे राजपुताने में घूमा लेकिन कोई मेरे साथआने को तैयार नहीं हुआ, अतः महाराज ने अपने सभी वीर योद्धाओं को आमन्त्रित किया और उन्हें शाहजहां की चुनौती के बारे में बताया, और कहा कि आप में से कोई एक महावीर आए और चुनौती को स्वीकार करे लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ।
तब महाराज क्रोधित हो गए और बुलंद स्वर में कहा कि क्या आज सभी राजपुत वीरों की वीरता सो गई है, क्या राजपूतों में अब वीर योद्धा नहीं रहे और यदि आप में से कोई वहां जानें के लिए तैयार नहीं है तो मैं स्वयं वहां जाऊंगा।
महाराज गजसिंह द्वितीय ने इतना कहा ही था कि एक आवाज आई "महाराज हमारे होते हुए आपको वहां जानें की क्या आवश्यकता" यह आवाज थी 18 वर्षीय राजपूत वीर वीर तोगा जी राठौड़ की लेकिन इतना कहते ही वह रुक गए। तो महाराज ने पूछा हे वीर आप रुक क्यों गए । तब वीर तोगा जी राठौड़ ने कहा महाराज अभी मेरा विवाह नहीं हुआ है।
तब फिर महाराज ने अपनी सभा में पुनः देखा तो भाटी सरदार अपनी पुत्री का विवाह तोगा जी राठौड़ से करने के लिए तैयार हुए, वीर तोगा जी राठौड़ और भाटी सरदार की पुत्री का विवाह किया गया। मीर खान ने वीर तोगा जी राठौड़ के त्याग को देख उनके वंश को बड़ाने के लिए शाहजहां से समय मांगना चाहा, लेकिन इस बात की खबर जब वीर तोगा जी राठौड़ की पत्नी को पता चली तो उन्होंने वीर तोगा जी राठौड़ के पास सन्देश पहुंचाया की हमारा विवाह जिस उद्देश्य के लिए हुआ जब तक वह पूरा नहीं होगा मुझे चेन नहीं मिलेगा।
स्वयं वीर तोगा जी राठौड़ भी यहीं चाहते थे अतः उन्होने महाराज से कहा कि अब वे आगरा जाना चाहते हैं l महाराज ने आज्ञा दे दी और तोगा जी राठौड़ आगरा जानें की तैयारी करने लगे। उधर शाहजहां को भी इस बात की सूचना दे दी गई थी तो उसने अपने दो पहलवान को तैयार किया और योजना बनाई कि हम तोगा जी राठौड़ को भोजन के लिए आमन्त्रित करेंगे और जब वह भोजन करने बैठे तुम तभी उसका सिर काट देना ताकि वह उठ भी न पाए।
वीर तोगा जी राठौड़ और उनके साथ ओर राजपूत सरदार आगरा पहुंचे, किले में उनका बहुत मान सम्मान किया गया फिर शाहजहां ने उन्हें भोजन के लिए आमन्त्रित किया । अब जैसे ही वीर तोगा जी राठौड़ और राजपूत सरदार भोजन के लिए आए एक पहलवान वीर तोगा जी राठौड़ के आस पास फिरने लगा , वीर तोगा जी राठौड़ को संदेह हो गया उन्होंने ने अपने साथी राजपुत सरदार से कहा कि मुझे कुछ गलत लग रहा है , और कहा कि यदि ये पहलवान मुझ पर वार करे तो आप पहलवान को संभाल लेना और मेरा सिर भी काट देना।
जैसे ही वीर तोगा जी राठौड़ भोजन के लिए बैठे वैसे ही एक पहलवान ने उन पर हमला किया साथी राजपुत सरदार ने उसे संभाल लिया और वीर तोगा जी राठौड़ का सिर काट दिया, बिना सिर के वीर तोगा जी राठौड़ ने एक पहलवान को मार दिया बाहर राजपूतों ने वीर तोगा जी राठौड़ और उनकी पत्नी की जय जयकार करने लगे , डोल नगाड़े बजने लगे, वीर तोगा जी राठौड़ युद्ध भूमि में मुगल सेना को काटने लगे, शाहजहां डर गया और चिंतित हो गया कि ये वीर ऐसे ही लड़ता रहा तो उसकी सेना को खत्म कर देगा अतः उसने महाराज गजसिंह द्वितीय के पास माफी का संदेश पहुंचाते हुए वीर तोगा जी राठौड़ को शांत करने का उपाय मांगा , तब महाराजा ने कहा कि उनके शरीर पर ब्राह्मण द्वारा गुल का पानी छिड़कवा दीजिए उनका धड़ शांत हों जायेगा।
शाहजहां ने ऐसा ही किया और वीर तोगा जी राठौड़ का धड़ आगे जाकर गिर गया, इधर उनकी पत्नी सती बनने के लिए तैयार ही थी जैसे ही वीर तोगा जी राठौड़ विरगती को प्राप्त हुए वैसे ही वे जमना नदी के किनारे सती बन गई।
वीर तोगा जी राठौड़ का रौद्र रुप देख शाहजहा भी आश्चर्य चकित हो गया और वीर तोगा जी राठौड़ की प्रशंसा करने लगा।
शाहजहां की नजरो में राजपूताना का सम्मान ओर बड़ गया। और वह जान एवम् समझ भी गया होगा की राजपूतों में कितनी शक्ति है इन्हें कोई नही हरा सकता न ही कोई इनका सामना कर सकता है।
धन्य हैं धरा मारवाड़ की जहां ऐसे वीर जन्मे , लेकिन इतिहास में ऐसे वीर के नाम बहुत कम सुनाई देता है , वीर तो बहुत है लेकिन उनके विषय में उनका जीवन हमें पढ़ाया नहीं जाता । उन्हे अपनी वीरता के अनुरूप इतिहास में स्थान नहीं मिला।
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