वीर अचलदास जी खींची के स्वाभिमान की गाथा

भारत की भूमि वीरो की भूमि हैं। यहां वीर अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। राजपूत योद्धा का जब सिर कट जाता था तो उनके धड़ युद्ध भूमि में शत्रु सेना से लड़ते रहते थे। जब राजपूत वीर मैदान -ए - जंग में उतरते थे तो विजय श्री प्राप्त करके ही वापस लौटते थे। जब हम भारत का इतिहास उठा कर देखेंगे तो हम कई ऐसे योद्धाओ के बारे में जानेंगे जिनका सिर कट गया परन्तु धड़ लड़ता रहा।


राजपूतों के गौरवशली इतिहास में आज हम ऐसे ही वीर योद्धा के बारे में जानेंगे जिनका सिर कट गया लेकिन धड़ लड़ता रहा और तब तक लड़ता रहा जब तक उन्हें विजय श्री प्राप्त नहीं हुई।
उस वीर योद्धा का नाम है अचलदास खींची। अचलदास खींची बड़े वीर और स्वाभिमानी थे । ये गागरोन के राजा थे । प्रजा इनके राज में सुखी थी, ये बड़े दयालु थे, और प्रजा के चहेते भी।
लेकिन भारत पर उस समय विदेशी आक्रमण हों रहे थे, मुगल भारत में आ गए थे, और मुगलों ने अपने आपको को मजबूत भी कर लिया था, कई राज्य के राजा, नवाब मुगलों के अधीन थे।
परन्तु अचलदास जी खींची स्वाभिमानी राजा थे, उन्हें किसी के सामने झुकना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। अचलदास जी खींची बड़े वीर, साहसी , और पराक्रमी योद्धा थे। और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना भी उन्हें खूब आता था
विक्रम संवत 1480 में होशंगशाह ने एक विशाल सेना के साथ गागरोंन पर आक्रमण कर दिया, होशंगशाह ने यह आक्रमण अपनी शक्ति को बड़ाने व गागरोन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिया किया था। होशंगशाह यह सोच रहा था कि मेरी विशाल सेना के सामने अचलदास जी आत्मसमर्पण कर देंगे और मैं गागरोन को अपने अधीन करलूंगा।
लेकिन वीर प्रतापी और स्वाभिमानी अचलदास जी खींची को किसी के सामने झुकना स्वीकार्य नहीं था । वे होशंगशाह की विशाल सेना जिसमें हाथी थे , घोड़े थे व पैदल सैनिक थे उससे युद्ध करने का निर्णय लिया।
 होशंगशाह ने गागरोन के किले को घेर लिया था व कई दिनों से किले के बाहर बैठा था। तब उसने  राज्य के धोबी के साथ मिलकर जलाशय में गोमांस गिरवा दिया। अब जल अशुद्ध हो चुका था वो पीने योग्य नहीं रहा, तब अचलदास जी खींची ने युद्ध करने का निर्णय लिया। राजपुताने में जब भी युद्ध होता था क्षत्रानिया जोहर की तैयारी कर ली थी ताकि कोई दुराचारी उन तक न पहुंचे अतः क्षत्रानियो ने जोहर की तैयारी कर ली। 
अचलदास जी ने अपने वंश की रक्षा के लिए अपने दो छोटे पुत्रो को मेवाड़ के महाराणा मोकल सिंह के पास जाने के लिए कहा , लेकिन दोनो योद्धा इस स्थिति में जबकि उनके राज्य पर युद्ध का संकट है ऐसे में जाने से मना कर दिया ,उन्होंने कहा हम राजपूत है और इस तरह अपने राज्य को छोड़कर कहीं नहीं जायेंगे परन्तु उन्हें अचलदास जी ने एवम राज्य के वरिष्ठ जनों ने समझा बुझाकर मेवाड़ भेज दिया।
अगले दिन सुबह किले के द्वार  खुले राजपूत वीरों ने देखा सामने शत्रु सेना खड़ी है और शेर की तरह शत्रुओं पर झपट पड़े। होशंगशाह की सेना संख्या में बहुत अधिक थी और राजपूत वीर उसकी सेना की तुलना में बहुत कम। लेकिन राजपूत वीरों के शौर्य, राजपूत वीरों के साहस, राजपुत वीरों के पराक्रम के सामने शत्रु सेना टीक नही पा रहे थी , होशंगशाह की सेना राजपूतों से भयभीत हो गई थी। राजपूत योद्धा संख्या में बहुत कम थी इसके पश्चात में होशंगशाह की विशाल सेना उनका सामना नहीं कर पा रही, युद्ध कई दिनों तक चला और अब युद्ध अपने अंतिम चरण में था महाराज अचलदास जी शत्रुओं के सर काटते जा रहे थे उन्हें नष्ट करते जा रहे थे, महाराज अचलदास जी की वीरता देखते ही बनती थी , तभी किसी शत्रु सैनिक ने उनके सर को काट दिया परन्तु सर कटने के बाद भी उनका धड़ उसी वेग के साथ उसी वीरता से युद्ध करता रहा और तब तक करता रहा जब तक की राजपूतों वीरों ने होशंगशाह की विशाल को नष्ट नहीं कर दिया, जब तक कि महाराज अचलदास जी खींची को विजय नही मिली।
युद्ध में विजय मिलने के बाद महाराज अचलदास खींची का धड शांत हुआ और वो वीरगति को प्राप्त हुए। युद्ध में महाराज अचलदास जी खींची के दस पुत्र भी वीरगति को प्राप्त हुए।
जहां अचलदासदास जी खींची का सर गिरा भमरपोल और जहां उनका धड़ शांत हुआ खसर तालाब दोनो ही स्थान पर महाराज अचलदास जी खींची के स्मारक बने हैं और आज भी यहां उनकी पूजा की जाती है।
 गागरोन का किला आज भी राजस्थान में अपनी एक अलग पहचान रखता है । किला अपने राजाओं की वीरता स्वाभिमान पर इठलाता है । गागरोन के किले पर कई बार शत्रुओं ने आक्रमण किए लेकिन हर बार यहां के राजाओं ने वीरता से उनका सामान किया कभी दुश्मन के सामने झुके नहीं।

टिप्पणियाँ

  1. धन्य है अचल दास जी खींची और धन्य है यह भूमि जहां ऐसे योद्धाओं ने जन्म लिया

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