राणा चूंडा के त्याग की कहानी।
अपने त्याग से अपनी वीरता से राजपूतों के गौरव को बड़ाने वाले वीर योद्धा राजकुमार चूंडा की गाथा । राजकुमार चूंडा , महाराणा लाखा के ज्येष्ठ पुत्र थे। राजकुमार चूंडा बड़े वीर , साहसी, और ज्ञानी थे।
प्रसंग उस समय का है जब मेवाड़ की सीमा से लगे राज्य मारवाड़ के राठौड़ राजा राव चूड़ा ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए अपने पुत्र राव रणमल को मेवाड़ भेजा। राव चूड़ा अपनी पुत्री का विवाह मेवाड़ के राजकुमार चूंडा से करवाना चाहते थे, लेकिन जब राव रणमल मेवाड़ के दरबार में पहुंचे तो दरबार में महाराणा लाखा उपस्थित थे एवम् राजकुमार चूंडा वहां नहीं थे, अतः राव रणमल ने विवाह का नारियल महाराणा लाखा के हाथो में दे दिया और दरबार से चले गए। महाराणा लाखा इस समय वृद्ध हों चुके थे।
अब विवाह का नारियल जिसके हाथों में रखा जाता है उसी के साथ विवाह होता है, अतः राजकुमार चूंडा ने विवाह के लिए मना कर दिया और अपने पिता के विवाह की इच्छा प्रकट की, राणा लाखा ने राजकुमार को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं माने, अब राणा लाखा विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार भी नही कर सकते थे अतः राणा लाखा विवश होकर विवाह हेतु तैयार हुए।
राजकुमार चूंडा अपने पिता के विवाह का प्रस्ताव लेकर मारवाड़ गए। राव चूड़ा ने यह स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त रखी, शर्त यह थी कि राणा लाखा के बाद राजकुमार चूंडा मेवाड़ के राणा न बने बल्कि अगले राणा , महाराणा लाखा और हंसा कुंवर ( राव चूड़ा की पुत्री) का पुत्र बने ।
राजकुमार चूंडा ने शर्त मान ली, इस शर्त रखने से यह भी सिद्ध होता है कि वास्तव मे राव चूड़ा व राव रणमल मेवाड़ की राजनीति में प्रवेश करना चाहते थे इसलिए वे राजकुमार चूंडा से अपनी पुत्री का विवाह कराना चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि राणा लाखा के बाद वहीं मेवाड़ के राणा बनेंगे, और जब राजकुमार चुंडा से विवाह संभव नहीं हो सका इसलिए उन्होंने यह शर्त रखी कि अगला राणा उनकी पुत्री का पुत्र बने।
राणा लाखा और हंसा कुंवर का विवाह हुआ, विवाह के 13 महीनों बाद हंसा कुंवर ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिनका नाम मोकल सिंह रखा गया।
राणा लाखा की मृत्यु के पश्चात् मोकल सिंह मेवाड़ के राणा बने एवम् राजकुमार चूंडा को संरक्षक बनाया गया परन्तु राजमाता हंसा कुंवर को उन पर संदेह था इस कारण राजकुमार चूंडा चित्तौड़ छोड़ कर मांडू चले गए , मांडू के राजा ने इनका बहुत मान सम्मान किया और एक क्षेत्र का प्रमुख बना दिया।
इस स्थिति का लाभ उठाते हुए राव चूड़ा और राव रणमल मेवाड़ आ गए एवम यहां की राजनीति में अनुचित हस्तक्षेप करने लगे , यह देख राजमाता को आपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने राजकुमार चूंडा को संदेश भेज कर उन्हे मेवाड़ की परिस्थितियों से अवगत करवाया और वापस आने का आग्रह किया राजकुमार चूंडा आग्रह को आदेश मान कर वापस आए ।
वापस आकर उन्होंने राव चूड़ा और राव रणमल को मेवाड़ की राजनीति से अलग कर दिया एवम् राव रणमल को मार दिया।
ऐसे थे राजकुमार चूंडा जिन्होंने अपने पिता के लिए अपना राज्य त्याग दिया और छोटे भाई के संरक्षक बने।
इसीलिए उन्हें मेवाड़ के भीष्म पितामह भी कहते हैं।
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