राव चंद्रसेन : जिन्हें मेवाड़ का प्रताप सिंह कहा जाता है

आज हम राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में जानेंगे  मारवाड़ के राव चंद्रसेन जी के बारे में 
राव चंद्रसेन, मारवाड़ के राव मालदेव सिंह राठौड़ के सबसे छोटे पुत्र थे। इनका जन्म 1541 में हुआ था।
राव चंद्रसेन बड़े वीर, साहसी और बुध्दिमान थे, अतः इनके पिता ने इन्हें पहले ही  अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
जिससे इनके दोनों बड़े भाई रामसिंह और उदयसिंह , चंद्रसेन से ईर्ष्या करने लगे थे।
राव मालदेव सिंह राठौड़ की मृत्यु के बाद राव चंद्रसेन जी राजगद्दी पर बैठे, लेकिन इनके दोनो भाइयों ने विद्रोह कर दिया, राव चंद्रसेन जी ने दोनों भाइयों के विद्रोह को दबा दिया।
लेकिन दोनो असंतुष्ट भाई नागौर गए, नागौर अकबर के अधीनस्थ एक रियासत थी जिसे हकीम कुली खां संभालता था, हकीम कुली खां ने अकबर को इसकी जानकारी दी तो अकबर ने हकीम कुली खां को जोधपुर पर आक्रमण करने का आदेश दिया, अकबर के लिए यह सुनहरा अवसर था क्योंकि वो तो राजपूतो में फूट चाहता ही था।
अतः हकीम कुली खां ने जोधपुर पर आक्रमण कर दिया इस सेना में उदय सिंह और राम सिंह भी थे, अतः राव चंद्रसेन जी ने जोधपुर का किला खाली कर दिया और जालौर के भाद्राजून में रहने लगे।
रावचंद्रसेन जी के पास साधन भी कम थे, सैनिक भी कम थे, और जोधपुर छोड़ने से आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी अतः उन्होंने अकबर से संधि करने का सोचा ।
अकबर ने नागौर में अपना दरबार लगाया था, इसमें मारवाड़ के सभी राजा आए थे, राव चंद्रसेन जी भी यहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सभी राजा अकबर के सामने सिर झुकाए खड़े है, और अकबर राजपूतों में फूट डाल रहा। यह देख राव चंद्रसेन वहां से चले आए।
बाद में अकबर ने बीकानेर के कुंवर राजसिंह के नेतृत्व में भद्राजून में सेना भेजी तो राव चंद्रसेन जी सिवाना चले गए।
सिवाना में चंद्रसेन जी छापेमार युद्ध प्रणाली द्वारा आस पास के अकबर के ठिकानों पर आक्रमण करते और उन्हें अकबर से स्वतंत्र कराते। अकबर परेशान था तो उसने जलाल खान के नेतृत्व में एक बड़ी सेना राव चंद्रसेन जी पर आक्रमण करने के लिए भेजी लेकिन चंद्रसेन जी ने छापेमार युद्ध द्वारा इस सेना को हराया और जलाल खान को मार दिया, अकबर और चिंतित हुआ और एक ओर बड़ी सेना शाहबाज खान के नेतृत्व में भेजी, शाहबाज खान ने  सिवाना को जीत लिया लेकिन राव चंद्रसेन जी यहां से निकल गए।
यहां से निकलकर राव चंद्रसेन जी मेवाड़ गए , मेवाड़ में बांसवाड़ा, डूंगरपुर में रहने लगे यहां रहते हुए उन्होंने छापेमार युद्ध द्वारा सारण की पहाड़ी से मुग़ल सेना को खदेड़ दिया और स्वयं सारण की पहाड़ी में रहने लगे, यहां रहते हुए उन्होंने छापेमार युद्ध द्वारा आसपास के अकबर शाशित क्षेत्रों को अकबर से आजाद कराया।
यही पर राव चंद्रसेन की कम आयु में मृत्यु हो गई, राव चंद्रसेन जी के पास अकबर के मुकाबले कम ही सेना व कम ही साधन थे, लेकिन फिर भी वह कभी अकबर के सामने नहीं झुके।

आइए जानते हैं राव चंद्रसेन जी के बारे में कुछ ओर बाते
राव चंद्रसेन जी को मारवाड़ का प्रताप सिंह भी कहते हैं क्योंकि जिस प्रकार महाराणा प्रताप ने पूरी उम्र अकबर का सामना किया कभी उसकी अधिनता स्वीकार नहीं की वैसे राव चंद्रसेन जी ने भी पूरे समय अकबर का सामना किया और कभी अकबर के सामने नहीं झुके।
राव चंद्रसेन जी को महाराणा प्रताप का आग्रगामी भी कहा जाता है ।

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