महाराणा उदय सिंह जी का इतिहास

मैं राजपूतों के गौरवशाली इतिहास में भारत के वीर योद्धाओं के बारे में आपको बताता हूं। वो वीर योद्धा जिन्होने देश के प्रति अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया। जो इतिहास की किताबे हम अक्सर पढ़ते उन किताबों में इन वीर योद्धाओं को उतना स्थान नहीं मिला जो इन महान योद्धाओं , वीरों को मिलना चाहिए था।
इस कारण हम लोग उन्हें इतना जानते भी नहीं है अतः राजपूतों का गौरवशाली इतिहास के माध्यम से मैं उन वीरों महावीरों का आपसे परिचय कराता हूं।
राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम जानेंगे मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह जी के बारे में।
उदय सिंह जी , वीर, पराक्रमी योद्धा महाराणा सांगा के पुत्र थे। और मां कर्णावती इनकी माता थी।
उदय सिंह जी भी अपने पिता की ही तरह वीर थे, साहसी थे और पराक्रमी थे। जब उदय सिंह जी छोटे थे तभी महाराणा सांगा वीरगति को प्राप्त हों गए थे और मां कर्णावती ने जौहर कर लिया था। किंतु जोहार से पूर्व मां कर्णावती ने कुंवर उदय सिंह जी को उनकी एक सेविका पन्ना धाय को सौंप दिया था । अतः पन्ना धाय ने ही कुंवर उदय सिंह जी को पाला था। 
महाराणा सांगा के विरगती प्राप्त हों जानें के बाद दासी पुत्र बनवीर ने मेवाड़ पर अधिकार कर लिया था उसने महाराज विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी तथा वह कुंवर उदय सिंह जी को भी मारने आया था परन्तु स्वामी भक्त पन्ना धाय के होते हुए वो कैसे कुंवर को कोइ हानि पहुंचा सकता था। पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राज्य के चिराग की रक्षा की, मेवाड़ के उज्ज्वल भविष्य की रक्षा की।
महल में संकट देख कर पन्ना धाय कुंवर उदय सिंह जी को कुंभलगढ़ किले में ले गई और यहीं महाराणा उदय सिंह जी का बचपन बीता।
बनवीर के राणा बनने से मेवाड़ के सभी सरदार असंतुष्ट थे अतः सभी धीरे धीरे कुंभलगढ़ चले गए। कुंभलगढ़ में महाराणा उदय सिंह जी युवा हों गए थे और महाराणा उदय सिंह जी महाराणा बनने के योग्य हो चुके थे। तब सभी सरदारों ने एक योजना बनाकर महाराणा उदय सिंह जी के नेतृत्व में बनवीर पर आक्रमण कर दिया एवम् महाराणा उदय सिंह जी मेवाड़ के महाराणा बन गए। महाराणा उदय सिंह जी बड़े वीर, पराक्रमी थे एवम कुशल शासक थे।  उनके शासन में प्रजा सुखी थी और खुश भी।
महाराणा उदय सिंह जी के समय शेर शाह सूरी ने दिल्ली का तख्त हासिल कर लिया था और भारत में कई रियासतों पर अधिकार भी । मेवाड़ के आस पास के कई राज्यों पर भी उसने आक्रमण कर जीत लिया तब एसे में महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय ने शेर शाह सूरी से युद्ध करने की अपेक्षा उससे संधि करली इस सन्धि से  मेवाड़ को कोइ नुकसान नहीं हुआ ।
बाद में हुमायूं ने दिल्ली पर अधिकर कर लिया और उसकी मृत्यु के बाद अकबर दिल्ली का बादशाह बना । अकबर ने अपनी कुटिल रणनीति के चलते कई रियासतों को अपने अधीन कर लिया लेकिन मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह जी ने उसकी अधिनता स्वीकार नहीं की तब अकबर एक विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए आया । मेवाड़ के सरदारों ने महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय को युद्ध में न जाने की सलाह दी और उन्हें कही ओर जानें के लिए कहा ताकि वे बाद में अकबर से लड़ सकें लेकिन राणा उदय सिंह जी द्वितीय नहीं जाना चाहते थे परन्तु सभी के बार बार कहने पर राणा उदय सिंह जी द्वितीय अपने परिवार के साथ चित्तौड़गढ़ से चले गए। अब अकबर मेवाड़ आ गया था और 
 अकबर 4 महीनों से किले के बाहर था इस युद्ध में मेवाड़ के नेतृत्वकर्ता थे वीर जयमल जी राठौड़ व उनके साथ थे वीर पत्ता जी चुंडावत, कल्ला जी राठौड़ जेसे 7000 राजपूत योद्धा और अकबर के साथ थी उसकी विशाल 60000की सेना ।  कई महीनों के बाद  सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ (इस युद्ध के विषय में मेने अपने पहले के एक आर्टिकल में बताया ) युद्ध में अकबर का नुकसान हुआ उसके पास युद्ध के बाद मात्र 20000 सैनिक बचे थे। इस वजह से अकबर खिसाया हुआ था और जब अकबर किले में पंहुचा तो उसने 30000 मासूम लोगो की हत्या कर दी।
महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय बाद में छापेमार युद्ध करते रहे और अकबर को नुकसान पहुंचाते रहे।
बाद में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया जिसमे राजस्थान की सभी रियासतों के राजा महाराजा आए लेकिन महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय नहीं आए।
महाराणा उदय सिंह जी द्वितीय अकबर को चुनौतियां देते रहें और उसे हानि पहुंचाते रहे।
महाराणा प्रताप सिंह , उदय सिंह जी के ही पुत्र थे । जो महाराणा उदयसिंह जी के बाद मेवाड़ के महाराणा बने , और अकबर को चुनौतियां देते रहें ।

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