झाला मान सिंह के त्याग की अमर गाथा
राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम गाथा सुनेंगे झाला मान सिंह जी की जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान कर महाराणा प्रताप की रक्षा की और महाराणा को अकबर से आगे भी युद्ध जारी रखने के लिए प्रेरित किया । वीर झाला मान सिंह जी ने अपने प्राणों का बलिदान देकर राजपूती गौरव को बढ़ाया।और अपनी मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा किया।
झाला मान सिंह बड़ी सादड़ी के राजराणा थे। बड़े सादड़ी के राजराणा हमेशा मेवाड़ के साथ थे और मेवाड़ की व मेवाड़ के महाराणा की सुरक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।
जब मेवाड़ में महाराणा सांगा का शासन था तब बड़ी सादड़ी के राजराणा थे अजजा जी।
खानवा के युद्ध में जब महाराणा सांगा घायल हों चुके थे तब अजजा जी ने ही युद्ध का नेतृत्व किया और युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
इसी प्रकार बड़ी सादड़ी के सभी राजराणा मेवाड़ की व मेवाड़ के महाराणा की सुरक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
इस वक्त जब महाराणा प्रताप मेवाड़ के महाराणा बने तब बड़ी सादड़ी में झाला मान सिंह जी थे। झाला मान सिंह जी बड़े वीर साहसी और पराक्रमी योद्धा थे। मातृभूमि के प्रति समर्पण का भाव उनके मन में था।
महाराणा प्रताप इस समय अकबर का सामना कर रहे थे जबकि कई रियासत के राजा नवाब अकबर के सामने नतमस्तक थे।
अकबर ने महाराणा प्रताप के सामने कई प्रलोभन दिए लेकिन महाराणा ने कभी अकबर की अधिनता स्वीकार नहीं की।
महाराणा अपनी मातृभूमि के स्वाभिमान के लिए राजपूती शान के साथ अकबर को चुनौतियां देते रहें।
सन 1576 में अकबर ने एक विशाल सेना मेवाड़ पर आक्रमण के लिए भेजी मानसिंह इस सेना का सेनापति था जबकि अकबर ने उसके कई प्रमुख योद्धाओ को भेजा था जिनमे उसका पुत्र सलीम भी शामिल था ।
अकबर की सेना और महाराणा प्रताप के मध्य हल्दी घाटी में भीषण युद्ध हुआ , युद्ध में अकबर की विशाल सेना थी जबकि महाराणा प्रताप के साथ मेवाड़ के वीर जो संख्या में बहुत कम थे , कुछ भील , कुछ राजपूत, कुछ पठान।
दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध चल रहा था मेवाड़ी वीर अकबर सेना पर सिंह की तरह टूट पड़े थे , अकबर की सेना भयभीत होकर इधर उधर भागने लगीं थी, तभी महाराणा प्रताप सलीम की ओर बड़े ,अकबर के सैनिकों को ने देखा और सलीम को बचाने के लिए पहुंचे अकबर सैनिकों ने महाराणा को चारो ओर से घेर लिया , महाराणा प्रताप घायल हों चुके थे और जब महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया था तब मानसिंह के हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक भी घायल हों गया था, लेकिन महाराणा प्रताप बड़ी वीरता के साथ मुगलों से लड़ रहे हैं थे।
तभी झाला मान सिंह जी ने महाराणा प्रताप की ओर देखा कि महाराणा प्रताप घायल हों चुके हैं और मुगल सेना उनके चारों ओर हैं , तब मुगलों को काटते हुए झाला मान सिंह महाराणा प्रताप के पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया कि आप युद्ध भूमि से जाइए और अपना मुकुट मुझे दे दीजिए ताकि मुगल सेना मुझे महाराणा समझें, लेकिन महावीर महापराक्रमी महान योद्धा राजपूती शान महाराणा प्रताप ने साफ मना कर दिया और कहा कि मैं युद्ध भूमि से नहीं जाऊंगा भले ही वीरगति को प्राप्त हों जाऊ। फिर मेवाड़ के सभी योद्धाओं ने महाराणा प्रताप को समझाया और निवेदन किया कि आपका जीवित रहना आवश्यक है आप है तो मेवाड़ सुरक्षित है आपके रहते अकबर कभी मेवाड़ को अपने अधीन नहीं कर पाएगा आप पुनः सेना एकत्रित करना और अकबर का सामना करना सभी की बाते सुन महाराणा को युद्ध से जाना पड़ा , महाराणा प्रताप का मुकुट झाला मान सिंह जी ने पहना और चेतक हवा से भी तिर्व गति से महाराणा को रणभूमि से दूर ले गया।
झाला मान सिंह जी को महाराणा प्रताप समझ कर मुगल सेना उन पर वार करने लगी झाला मान सिंह बड़ी वीरता से मुग़ल सेना से युद्ध करने लगे , मुगल सेना को मारने लगे काटने लगे , लेकिन विशाल सेना के सामने मेवाड़ी वीर कब तक टीक पाते, वीरता और साहस के साथ लड़ते हुए झाला मान सिंह वीरगति को प्राप्त हुए , कई राजपूत वीर वीरगति को प्राप्त हुए।
लेकिन युद्ध के बाद अकबर की विशाल सेना विशाल नहीं रही उसके कई प्रमुख योद्धा मारे गए उसकी सेना में कुछ ही सैनिक शेष बचे, अकबर पूरी ताकत झोंकने के बाद भी युद्ध नही जीत सका और सही मायने में इस युद्ध में मेवाड़ की विजय हुई।
झाला मान सिंह ने अपने प्राणों का बलिदान देकर मेवाड़ को आगे के लिए भी मजबूत किया क्योंकि युद्ध से महाराणा सुरक्षित लोटे थे।
जब महाराणा प्रताप के इतिहास को पड़ा जायेगा तब वीर झाला मान सिंह जी का नाम अवश्य लिया जायेगा।
धन्य हैं झाला मान सिंह जिन्होने अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण कर दिया लेकिन मातृभूमि के स्वाभिमान को आंच तक न आने दें।
इस युद्ध में मिली हार ने अकबर के घमंड को भी चूर चूर कर दिया।
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