कहानी महाराणा प्रताप के स्वामिभक्त चेतक(घोड़ा) और स्वामिभक्त रामदास (हाथी)
चेतक और रामदास की स्वामी के प्रति समर्पण की गाथा
महाराणा प्रताप का एक घोड़ा था जिसका नाम था चेतक, चेतक बुद्धिमान और वीर था।
चेतक के पैरों की टाप हाथी की सूंड तक पहुंचती थी जिससे महाराणा प्रताप हाथी पर बैठे अपने शत्रु पर वार करते थे। युद्ध में जानें से पहले चेतक के मुंह पर हाथी की सूंड लगाई जाती थीं, जिससे सामने वाली सेना के हाथी भ्रमित हो।
हल्दीघाटी के युद्ध में जब महाराणा प्रताप घायल हों गए थे, और उनके साथी उन्हें युद्ध क्षेत्र से दूर जानें के लिय कह रहें थे तब चेतक अपने स्वामी को युद्ध से दूर ले गया ताकि महाराणा प्रताप फिर दुगुनी ताकत के साथ अकबर पर आक्रमण कर सकें।
तब चेतक महाराणा की रक्षा करते हुए 25फिट नाला कूद गया, जिसे अकबर की सेना पार नहीं कर पाईं।
वो भी तब जब युद्ध में चेतक के पैर में चोट लग गई हुई थी लेकिन उस चोट के बावजूद चेतक ने अपने स्वामी की रक्षा की और स्वामी के प्रति अपनी वफादारी को बताया।
घायल चेतक ने जब नाला पार किया तो उसने अपने स्वामी को तो सुरक्षित कर लिया लेकिन स्वयं वीरगति को प्राप्त हो गया।
महाराणा प्रताप जिनकी आंखों में कभी आंसू न आए आज अपने मित्र को जाते देख खुद को रोक न पाए आज उनकी आंखे आंसुओ से भीगी हुईं थीं।
आज भी चेतक की वीरता, स्वामिभक्ति के किस्से राजस्थान में सुनाए जाती हैं।
महाराणा प्रताप का हाथी था जिसका नाम था रामदास, रामदास भी अपने स्वामी के प्रति वफादार था।
रामदास को अकबर पालना चाहता था, और इसलिए वह रामदास के सामने कई प्रकार के फल रखता था, कई प्रकार के व्यंजन रखता था , लेकीन रामदास ने कभी कुछ नहीं खाया।
रामदास कभी अकबर के सामने नहीं झुका, 18 दिन तक रामदास ने कुछ नहीं खाया अंत में रामदास की मृत्यु हो गई, लेकिन रामदास ने अकबर के यहां कुछ नहीं खाया।
रामदास की स्वामिभक्ति को देख अकबर भी कह पड़ा कि जिसका हाथी मेरे सामने नहीं झुका वो वीर मेरे सामने कैसे झुकेगा।
इतने दयालु थे महाराणा प्रताप की उनके जानवर भी उनसे प्यार करते थे, और उनके लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया।
क्या व्यक्तित्व रहा है महाराणा प्रताप का कि उनके जानवर भी उनसे इतना स्नेह करते थे कि महाराणा प्रताप के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया और उनके दुश्मन के सामने कभी नहीं झुके
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