दानवीर भामाशाह: मातृ भूमि के सच्चे सपूत

राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम जानेंगे मेवाड़ के सच्चे पुत्र दानवीर भामाशाह के बारे मे जिन्होंने अपनी सारी संपत्ति महाराणा प्रताप को देकर उन्हें पुनः अकबर से युद्ध के लिए मजबूत किया ।
 भामाशाह का जन्म 29 अप्रैल 1547 को हुआ था। इनके पिता का नाम भारमल था , जिन्हें महाराणा सांगा ने रणथम्भोर किले का किलेदार नियुक्त किया था। अर्थात् भामाशाह का परिवार शुरुआत से ही मेवाड़ की सेवा मे था । महाराणा सांगा के साथ भामाशाह के पिता जी रहे तो महाराणा प्रताप और उदय सिंह जी के साथ भामाशाह रहे ।
भामाशाह मेवाड़ के मंत्री और सलाहकार थे, एवम् महाराणा प्रताप के विश्वसनीय भी। महाराणा प्रताप के भामाशाह विश्वास पात्र थे क्योंकि वो कब से मेवाड को जानते थे वो उदय सिंह जी के साथ भी रहे थे , मेवाड की हर स्तिथी को अच्छे से जानते भी थे , एवम् उन्हें अनुभव भी था । अब जिस प्रसंग कि हम अब बात करेंगे ये प्रसंग  उस समय का है जब महाराणा प्रताप अरावली पर्वतमाला में रहकर अपने विश्वसनीय साथियों व सेनिको के साथ अकबर का सामना कर रहे थे। हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप के पास न तो इतना धन बचा था और न ही इतने साधन की अकबर की विशाल व साधनों से परिपूर्ण सेना का सामना कर सकें । अकबर के सामने सभी राजाओं ने नवाबों ने घुटनें टेक दिए थे , अकेले महाराणा प्रताप उसका सामना कर रहे थे।
लेकिन अब हल्दीघाटी युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने जो  मेवाड़ के  आस पास के  क्षेत्र जीते थे उन्हें अपने विश्वसनीय सरदारों को सौंपकर  अपने परिवार और विश्वसनीय साथियों के साथ गुजरात तरफ जानें का निर्णय लिया यह सोचकर कि वहां से कुछ धन व साधन अर्जित करके पुनः अकबर पर आक्रमण करेंगे और मेवाड़ को अपनी मातृभूमि  को स्वतंत्र कराएंगे।
जब महाराणा गुजरात की ओर बड़े तभी पीछे से आवाज आई रुकिए महाराणा यह आवाज थी मेवाड़ के मंत्री व सलाहकार भामाशाह की , भामाशाह ने कहा आप ये क्या कर रहे हो राणा जी आपनी मातृ भूमि को छोड़कर जा रहे हैं वो भी इन परिस्थितियों में। तब महाराणा प्रताप ने निराश स्वर में भामाशाह को पूरी बात बताई, महाराणा प्रताप की बात सुनकर भामाशाह ने कहा महाराणा मै अपने जीवन में कमाई हुई सारी संपत्ति आपको देता हूं आप अपनी सेना को पुनः संगठित करिए, पुनः अकबर पर आक्रमण कीजिए और अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराए, इससे अच्छा क्या होगा राणा जी कि मातृभूमि से प्राप्त संपत्ति आज उसी के काम आयेगी । लेकिन महाराणा प्रताप ने कहा कि ये आपकी संपत्ति ये आपने कमाई हैं मैं इसे कैसे ले सकता हूं ।
तब भामशाह ने कहा की राणा जी आज यदि ये धन देश के काम न आया तो फिर किस काम का और राष्ट्र की सेवा और रक्षा करना तो प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य और धर्म हैं सिर्फ राजा का ही नहीं।
भामाशाह की बाते सुन महाराणा ने उन्हें अपने गले से लगा लिया और दोनों की आंखों से स्नेह के आंसू बहने लगे ।
कहते हैं भामाशाह ने इतनी सम्पत्ति दान की  थी जिससे 25000 सैनिकों का 12 वर्ष तक का राशन हों जाए।
विकट परिस्थितियों में भामाशाह के दान ने महाराणा प्रताप में पुनः आशा की किरण जगा दी , निराश हो चुके महाराणा प्रताप ने पुनः अकबर को चुनौतियां देना शुरू कर दिया और अपनी मातृभूमि को आजाद कराया।
और भामाशाह ने मातृ भूमि से  प्रेम की एक अलग ही परिभाषा लिखदी , भामाशाह ने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व दान दे  दिया।
उदयपुर में राजाओं की समाधियों के मध्य दानवीर भामाशाह की समाधि है। भामाशाह को राजस्थान का बच्चा बच्चा जानता है उनके त्याग और मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम की सभी सराहना करते है । मेवाड  के इतिहास में भामशाह का नाम हमेशा आदर व सम्मान के साथ लिया जायेगा , मेवाड़ हमेशा अपने दानवीर पर गर्व करेगा।
धन्य हैं भामाशाह जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण कर दिया और धन्य है मेवाड़ की माटी जहां ऐसे महापुरुष जन्में।

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