महाराणा कुम्भा के शौर्य ,स्थापत्य और विजय की अमर गाथा

हम बात कर रहे हैं महाराणा कुंभकर्ण अर्थात् महाराणा कुम्भा की।
महाराणा कुम्भा शक्तिशाली तो थे ही साथ में विद्वान और विद्यानुरागी भी थे।
राणा कुम्भा ने महज 35 वर्ष की अल्पायु में 32 किलों का निर्माण करवाया।
मेवाड़ में कुल 84किले हैं जिनमें से 32 किले अकेले राणा कुम्भा के समय में बने।
राणा कुम्भा ने कुंभलगढ अचलगढ आदि को बनवाया।
राणा के समय को स्थापत्य का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।
राणा कुम्भा एक शक्ति शाली राजा थे, उन्होंने युद्ध में दिल्ली के सुल्तान महमूद शाह, और गुजरात के सुल्तान अहमद शाह, हराया और अपना अधिकार किया।
उन्होंने मालवा के शासक को सारंगपुर के पास बुरी तरह हराया और विजय के स्वरूप में चित्तौड़ दुर्ग में विख्यात विजय स्तंभ बनवाया।
इसे से पहले उन्होंने मेवाड़ के आस पास के किलों पर भी अपना अधिकार कर लिया था।
मुगल शासकों ने कई बार राणा कुम्भा पर आक्रमण किया लेकीन हर बार राणा कुम्भा के सामने उन्हें पराजय मिली।
एक बार  गुजरात और मालवा के शासकों ने सयुक्त रूप से  महाराणा कुम्भा पर आक्रमण किया लेकीन फिर भी मुगल सेना महाराणा कुम्भा के सामने नहीं टिक पाई।

राणा कुम्भा को आधुनिक चित्तौड़ दुर्ग का निर्माता भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने चित्तौड़ के आधुनिक भाग का निर्माण करवाया था।
राणा कुम्भा बड़े दयालु थे, जहां पानी की कमी होती थी, और पानी के कारण लोगों को परेशानी होती थी, महाराणा वहीं तालाब का निर्माण करवा देते थे।
 
महाराणा कुम्भा को जगपति, नरपति, छापगुरु, दान गुरु , हिंदू सम्राट जैसी कई उपाधियों से नवाजा।

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