अमरयोद्धा आल्हा और ऊदल: आल्हा जिन्हें महावीर बर्बरीक का अवतार भी माना जाता है
आल्हा और ऊदल
आल्हा ऊदल चंदेल के परमाल राजा के सेनापति दशराज के पुत्र थे।
आल्हा और ऊदल की गाथा राजपूती शौर्य को बताती है।
ऊदल अपने बड़े भाई आल्हा से लगभग 12 वर्ष छोटे थे, ऊदल का जन्म अपने पिता की हत्या के लगभग 3 माह बाद हुआ था।
ऐसा कहा जाता है कि जब ऊदल का जन्म हुआ तो धरती ढाई हाथ नीचे धंस गई।
ऊदल की मां देवलते ने ऊदल को नही पाला, ऊदल को पाला उनकी धरम की मां मलहाना ने।
दोनो ही भाई वीर थे, साहसी थे, पराक्रमी थे।
दोनो की वीरता के चर्चे पूरे महोबा में थे, सभी लोग यहां तक कि राजा परमाल भी उनसे प्रभावित थे।
आल्हा ऊदल ने 52 लड़ाईयां लड़ी और सभी में विजय रहें।
दोनो भाइयों की अंतिम लड़ाई दिल्ली के महाराजा पृथ्वी राज चौहान के साथ हुई, दोनों तरफ से भीषण प्रहार हुए, युद्ध में पृथ्वी राज चौहान घायल हों गए, तो सेनानायक चामुंडा राय ने दिल्ली की सेना का नेतृत्व किया, ऊदल बड़े भयानक रूप में शत्रु पर प्रहार कर रहे थे, जिससे घबरा कर चामुंडा राय ने भाले से ऊदल पर प्रहार किया और भाला ऊदल की छाती को चीरते हुए जमीन पर जा टीका, और महावीर ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए, अपने भाई की मृत्यु से दुःखी आल्हा ,काल की तरह शत्रु सेना पर टूट पड़े, ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध में आल्हा ऊदल की जीत हुई और आल्हा ने उस समय के महान संत गोरख नाथ जी के कहने पर महाराज प्रथ्वी राज चौहान को छोड़ दिया।
इस युद्ध के पश्चात आल्हा ने सब कुछ छोड़ दिया।
एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि आल्हा, महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के अवतार थे। और वह आज भी जीवित है, एवम् आज भी अपनी कुलदेवी के सबसे पहले पूजा करते हैं।
आल्हा और ऊदल बहुत पराक्रमी और शूरवीर थे।
आज भी कहा जाता है:
"महोबा वाले बड़े लड़ाईयां, खनक खनक बाजे तलवार,
एक को मारे दो मरजाव, तीजा खोफ खाए मरजाये,
महोबा वाले बड़े लड़ाईयां, इनकी मार सही न जाएं।"
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