तात्या टोपे: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी
राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम राजपूत वीर के बारे में नहीं बल्कि आज जानेंगे मां भारती के सच्चे सपूत वीर योद्धा, स्वतंत्रता प्रेमी तात्या टोपे के बारे मे
तात्या टोपे का जन्म महाराष्ट्र के नासिक के येवला ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पांडुरंग राव एवम् माता का नाम रुक्मणि बाई था । तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग यवलकर था । तात्या अपने 8 भाई बहनों में सबसे बड़े थे।
इनके पिता पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां काम करते थे, और पिता के साथ ही तात्या महल में कुछ छोटे मोटे काम काज करते थे, साथ ही में शिक्षा भी प्राप्त करते थे।
तात्या जब युवा अवस्था में पहुंचे तो पेशवा बाजीराव द्वितीय ने इन्हें मुंशी बना दिया, तात्या अपना काम पूरे लगन और ईमानदारी से करते थे, तात्या के इसी व्यवहार से खुश होकर पेशवा ने इन्हें एक कई प्रकार के रत्नों से जड़ित टोपी भेंट की थी।
इसी बीच अंग्रेजी सेना ने पेशवा बाजीराव द्वितीय पर आक्रमण कर दिया, इस युद्ध में पेशवा की हार हुई और उन्हें बिठूर आना पड़ा। पेशवा के साथ पांडुरंग राव भी अपने परिवार को लेकर बिठूर आ गए। यहीं पर तात्या टोपे की पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब से भेंट हुई और दोनों की मित्रता हुई , दोनों की मित्रता इतनी घनिष्ठ थी कि लोग तात्या को नाना साहब का दाया हाथ कहते थे। दोनों ने साथ में शिक्षा ग्रहण की , युद्ध की शास्त्रों की।
मौका पाकर नाना साहब व तात्या टोपे ने अपनी 20000 की सेना के साथ कानपुर पर आक्रमण कर दिया और वहां से अंग्रेजो को भगा दिया, नाना साहब को कानपुर का पेशवा व तात्या टोपे को सेनापति नियुक्त कर दिया।
अभी कुछ ही दिन हुए थे कि अंग्रेज सेना ने बिठूर पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में तात्या की हार हुई लेकिन तात्या वहां से निकल आए।
1857 में अंग्रेजो की नीतियों से भारतीय परेशान थे , और अंग्रेजो से स्वतंत्रता चाहते थे, और अंग्रेजो के विरुद्ध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया इस संग्राम में तात्या टोपे ने प्रमुख योगदान दिया कई जगह गुरिल्ला युद्ध में अंग्रेजो को हराया।
बाद में अंग्रेजो ने झांसी पर आक्रमण कर दिया इस युद्ध में तात्या टोपे अपनी 15000 की सेना लेकर महारानी लक्ष्मी बाई की सहायता के लिए आए दोनो सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ लेकिन अंग्रेज सेना संख्या में अधिक थी इस युद्ध में महारानी लक्ष्मी बाई वीरता के साथ युद्ध करते हुए शहीद हो गई, लेकिन तात्या यहां से भी निकल गए।
तात्या टोपे ने गुरिल्ला युद्ध करते हुए अंग्रेजो को खूब परेशान किया और कई युद्ध में अंग्रेजो को हराया, अंग्रेजो में तात्या टोपे के नाम का खोफ हो गया था।
तात्या टोपे ने अंग्रेज सेना को विंध्य की पहाड़ी से अरावली पर्वतमाला तक 2800 मिल तक घुमाया लेकिन अंग्रेज सेना तात्या टोपे को नहीं पकड़ पाई।
बाद में मानसिंह ने गद्दी के लालच में आकर तात्या टोपे से गद्दारी कर ली और तात्या टोपे को पकड़वा दिया , 18 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे को अंग्रेजो ने फांसी दे दी।
वर्ष 2016 में भारत सरकार ने तात्या टोपे के सम्मान में डाक टिकट शुरू की।
तात्या टोपे के त्याग, बलिदान को याद करते हुए मध्य प्रदेश में तात्या टोपे मेमोरियल बनाया गया जहां तात्या टोपे की एक प्रतिमा भी बनाई गई।
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