गाथा स्वामीभक्त सम्पत राय की जिन्होंने अपने स्वामी के लिए प्राणों का बलिदान दे दिया
भारत की भूमि पर कई ऐसे महापुरुष का जन्म हुआ़ हैं जिन्होंने अपने कर्म से अपना नाम सदा के लीये इतिहास में अमर कर लिया । ऐसे लोगों ने स्वयं से पहले अपने राष्ट्र , अपने लोग और अपने स्वामी को रखा और इन्हीं की सेवा करते हुऐ अपने प्राणों का त्याग कर दिया । राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम जानेंगे ऐसे ही महापुरुष सामंत सम्पत राय जी की बारे मे जिन्होंने अपनी अन्तिम स्वास तक दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सेवा की। और उनकी रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
मेरे ब्लॉग में हम पहले पढ़ चुके हैं कि महोबा और दिल्ली की सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में महोबा की ओर से आल्हा और ऊदल प्रमुख योद्धा थे, जबकि दिल्ली के सम्राट महाराज पृथ्वी राज चौहान ने स्वयं इस युद्ध का नेतृत्व किया था।आल्हा और ऊदल जो कि बड़े वीर और साहसी थे, उन्होंने अपने जीवनकाल मे जीतने भी युद्ध लड़े थे सभी में विजय रहें थे तो इधर महाराजा पृथ्वीराज चौहान भी किसी से कम नहीं थे वे भी वीर थे बहादुर थे पराक्रमी थे एक कुशल योद्धा थे , उन्होने ने भी मोहम्मद गोरी को कई बार युद्ध में हराया और कई राजाओं को परास्त कर दिल्ली के सम्राट बने थे।
लेकिन आज रणभूमि मे दो सूरमाओं की टक्कर थी , महोबा का युद्ध बड़ा भीषण होने वाला था। क्योंकि दोनों ही तरफ शोर्य साहस और पराक्रम था । दोनों हि तरफ के वीर एक से बढ़ कर एक थे ।
दोनों सेनाएं युद्ध भूमि में पहुंची और दोनो सेनाओं में भीषण घमासान होने लगा, दोनो ओर के योद्धा अपना रणकोशल दिखा रहे थे। जब युद्ध अन्त में पहुंचा तो युद्ध भूमि में दोनो ओर के कई योद्धा घायल पड़े थे, इन्ही घायल योद्धाओं में थे दिल्ली के सामंत सम्पत राय।
महाराजा पृथ्वीराज चौहान भी युद्ध में घायल हों गए थे। और दर्द के कारण कराह रहें थे। सम्पत राय के कानों में दिल्ली के महाराजा पृथ्वी राज चौहान के करहाने की आवाज पड़ी , उन्होंने देखा दिल्ली के सम्राट घायल पड़े हैं और गिद्ध उनके मांस को खा रहे हैं, तब सम्पत राय घिसाते हुए अपने स्वामी के पास पहुंचे और कटार से अपने मांस को काट काट कर गिद्धों को खिलाने लगे और अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा की।
उन्होंने अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिए । और इतिहास में स्वामी के प्रति समर्पण कि मिशाल पेश की।
धन्य है महाराज प्रथ्वीराज चौहन जिन्हें ऐसे सामंत मिले और धन्य हैं मां भारती जहां ऐसे लोगो ने जन्म लिया जिन्हें अपने प्राणों से अधिक प्रिय कर्तव्य रहा।
युद्ध में आल्हा और ऊदल विजय रहें लेकिन सम्राट प्रथ्वी राज चौहान भी युद्ध से जीवित लौटे । सम्राट ऋणी हों गये सामंत सम्पत राय जी के।
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