हकीम खां सूरी : कहानी एक अफगानी पठान की वीरता की

राजपूतों का गौरवशाली इतिहास में आज हम जानेंगे कि किस तरह हल्दी घाटी के युद्ध में एक पठानी वीर ने अकबर की सेना को नाकों चने चबवा दिए । हकीम खां सूरी बड़ा वीर और पराक्रमी योद्धा था। हकीम खां सूरी अफगान के बादशाह सेर शाह सूरी का वंशज था।
हकीम खां,  उदय सिंह जी के अंतिम समय में मेवाड़ आया था।
यहां हकीम खां को शस्त्रा गार का प्रमुख बनाया था। उदय सिंह जी के बाद कुंवर प्रताप सिंह मेवाड़ के महाराणा बने, महाराणा प्रताप सिंह और हकीम खां सूरी दोनो अच्छे मित्र थे।
हकीम खां सूरी बहुत बलवान थे और उनकी मांसपेशियां उतनी ही मजबूत ।
एक बार जब महाराणा प्रताप से किसी ने कहा   कि जब हकीम खां सूरी के अंदर भाला घुस जाता है तो उसे निकालने के लिए हकीम खां की छाती पर पैर रखना पड़ता है तब महाराणा प्रताप ने कहा कि कोन है जो मेरे रहते हुए मेरे मित्र हकीम के छाती पर पैर रखेगा। तो इतनी घनिष्ठ थी दोनो की मित्रता।
जब हल्दी घाटी में महाराणा प्रताप और अकबर सेना में युद्ध हुआ तो महाराणा प्रताप ने हकीम खां सूरी को सेनापति बनाया, मैदान में प्रथम पंक्ति में हकीम खां सूरी के नेतृत्व में खड़ी सेना जिसमें 1500 राजपुत वीर व 1000 पठान सैनिक मौजूद थे ।( पठान जो बिहार से हकीम खां सूरी के साथ आए थे)।
जैसे ही युद्ध आरम्भ हुआ हकीम खां के नेतृत्व वाली सेना अकबर की सेना पर टूट पड़ी मुग़ल सैनिकों के सिर काट दिए कई को मौत के घाट उतार दिया और जैसे ही मध्य में खड़े अन्य राजपुत योद्धाओं ने मोर्चा संभाला तो मुग़ल सेना भयभीत हो गई और यहां वहां भागने लगीं, इस समय ऐसा लग रहा था मानो मेवाड़ सेना युद्ध जीत जाएगी, लेकिन बाद में और बड़ी संख्या में मुग़ल सैनिक वहां आ गए और दोनों सेनाओं के मध्य भीषण युद्ध हुआ । मेवाड़ के प्रमुख योद्धाओ व हकीम खां सूरी ने महाराणा प्रताप से निवेदन किया कि आप यहां से जाइए हम इनको संभालते हैं लेकिन महाराणा प्रताप जानें के लिए तैयार नहीं हुए तब फिर सभी ने उन्हें समझाया कि आपका जाना जरूरी है आप जाइए और सेना तैयार कीजिए ताकि हम अकबर को आगे हरा सके तब महाराणा प्रताप वहां से गए।
बाकी सभी योद्धा अकबर के सैनिकों को मौत के घाट उतारने लगे । युद्ध के आरम्भ में हकीम खां सूरी ने अपनी टुकड़ी से कहा था कि" देखते हैं आज कोन सैनिक हकीम खां के हाथों से तलवार गिराता है खुदा कसम हकीम के मरने के बाद भी कोई उसके हाथों से तलवार को अलग नहीं कर पाएगा।"
युद्ध में हकीम खां सूरी बहादुरी व वीरता के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
बाद में हकीम खां सूरी की दो मजारे बनवाई गई एक वहां जहां उनका सर गिरा था रक्त तलाई में व एक वहां जहां उनका घोड़ा धड़ लेकर गया था खमनोर गांव में।
हकीम खां सूरी के वीरगति प्राप्त हो जानें के बाद भी उनके हाथों से तलवार नहीं छूटी और उन्हे तलवार के साथ ही दफनाया गया।
यह देख महाराणा प्रताप ने कहा वाह रे हल्दी घाटी के पठान वीर न लगाम छूटी न शमशीर।

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