वीर भान जी जडेजा की अमर गाथा जिन्होंने अकबर को दो बार युद्ध भूमि से भगाया

इतिहास राजपूतों की शोर्य गाथाओं से भरा हुआ है। राजपूत वीरों ने अपने देश के लिए, आपनी प्रजा के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया।
आज हम ऐसे ही एक राजपूत वीर की बात करेंगे जिनका नाम हम इतिहास में तो इतना नहीं सुनते हैं, लेकिन आज भी गुजरात की भूमि उस महावीर की वीरता साहस पराक्रम को बयां करती है। आज हम बात करेंगे उस योद्धा की जिसने राजपूतों के इतिहास को गौरवशाली बना दिया।
प्रसंग है विक्रम संवत 1633(1576ईस्वी) मेवाड़ और गोंडवाना की तरह ही गुजरात की कई रियासतों ने अकबर के सामने समर्पण नहीं किया था। गुजरात को जीतने का जिम्मा अकबर ने लिया। इसी उद्देश्य से वह आपनी सेना को लेकर चल पडा जूनागढ़ पर आक्रमण करने के लिए, ।
जूनागढ़ के नवाब ने अपने पड़ोस नवानगर(जामनगर) के राजपुत राजा, राजा जाम सत्ता जी जड़ेजा से मदद मांगी, राजा जाम सत्ता जी जड़ेजा ने क्षत्रियधर्म के अनुसार नवाब की सहायता के लिए  30000 योद्धा भेजे जिनका नेतृत्व कर रहे थे नवानगर के सेनापति वीर भान जी जडेजा। भान जी जडेजा वीर बहादुर और पराक्रमी योद्धा थे,।
बाद में जुनागढ़ के नवाब ने अकबर की विशाल 1 लाख की मुगलसेना को देख कर आत्म समर्पण करने का निर्णय लिया और वीर भान जी जडेजा को वापस जाने के लिए कहा।
इस बात से सभी राजपूत वीर क्रोधित हो गए और वीर भान जी जडेजा ने नवाब से राजपूती तेवर में कहा कि जब राजपुत युद्ध के लिए निकलते हैं तो या तो वे विजय प्राप्त कर लोटते है या फिर वीर गति को प्राप्त होकर।
राजपूत वीरों ने निर्णय लिया कि वे बिना युद्ध के वापस नहीं जायेंगे और उन्होंने सोचा कि जूनागढ़ के बाद अकबर नवानगर (जामनगर) के लिए बडेगा, अतः उन्होंने यहीं रुकने का निर्णय लिया।
अकबर की 1लाख की सेना मजेवाड़गांव के मैदान में थी, अकबर के पास तोपे भी थी, तो वीर भान जी जडेजा ने योजना बनाई कि वह स्वयं और कुछ राजपुत योद्धा जायेंगे और तोप को निष्क्रीय करेंगे, राजपुत योद्धाओं ने सभी तोप को निष्क्रीय कर दिया था तभी मुगल सेना को पता चल गया रात्रि को ही युद्ध शुरू हो गया, मुगल सेना की ओर से युद्ध का नेतृत्व मिर्जा खान कर रहा था, बाकी राजपुत सेना भी  मैदान में आ गई, दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ, राजपुत वीरों ने मुगल सेना के कई सैनिकों को काट दिया, मिर्जा खान डर गया और भाग गया, युद्ध सुबह तक चला, और सुबह सभी मुगल सैनिक अपने समान को वहीं छोड़ कर भाग गए, कुछ दूरी पर रूका अकबर भी सूचना पाकर अपने विश्वशनीय साथियों के साथ वहां से भाग निकला।
राजपूत वीरों ने लगभग 20कोस तक मुगलों का पीछा किया जो हाथ में आए उन्हें काट दिया, फिर वीर भान जी जडेजा और राजपुत वीर मजेवाडी गांव स्थित अकबर के शिविर आए और 52हाथी व 3530 घोड़े साथ लिए।
बाद में वीर भान जी जडेजा, जुनागढ़ के नवाब को उसकी कायरता को बताने के लिए जुनागढ़ आए और दरवाज़े को तोड़ कर नवागढ़ ले गए, ये दरवाज़े आज भी नवागढ़ (जामनगर) में है इन्हीं खंबालिया कहते हैं। जुनागढ़ के नवाब को बाद में शर्मिंदगी और पछतावा हुआ और उसने नवागढ़ के राजा जाम सत्ता जी जड़ेजा से माफी मांगी एवम् दण्ड के रूप में चूरू, भार व 24 गांव , जोधपुर परगना ( काठियावाड़ क्षेत्र जहां अकबर रूका था) नवागढ़ रियासत को दिए।
कुछ समय बाद अकबर हार का बदला लेने आया, तानमाच की लड़ाई हुईं इस लड़ाई में भी अकबर की हार हुई और अकबर को भागना पड़ा।
हम कितने अभागे है जो हमारे ही वीरो के बारे मे नहीं  जानते है उन वीरो के विषयो मे हमें जानकारी ही नहीं जिनके त्याग बलिदान और शोर्य के कारण आज हम खुशहाल जीवन जी रहे हैं । हमारे वीर जिन्होने विदेशी आक्रमण से हमारी मातृभूमि की रक्षा की और उन दुष्टो से हमारे भारत की रक्षा की ।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट