चित्तौड़ के सेनापति गौरा व बादल
यह उस समय का प्रसंग जब चित्तौड़ के रावल, रावल रतन सिंह जी थे। इस समय गोरा चित्तौड़ के सेनापति थे। एक राजस्थान के कवि उन्हीं के लेखन को में आपको बता रहा हूं, बात उस समय की है जब मां पद्मावती के सौंदर्य के बारे में जलालुद्दीन ने सुना और मां पद्मावती को देखने की इच्छा प्रकट की। लेकिन ये चीज राजपूताना शान के खिलाफ थी अतः रावल रतन सिंह जी ने सपष्ट शब्दो में खिलजी को मना कर दिया।
खिलजी इस बात से खिसाया और चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया, चित्तौड़ की सेना ने बड़ी बहादुरी से खिलजी की सेना का सामना किया और खिलजी की सेना के होसलो को पस्त कर दिया।
अब कुटिल खिलजी ने एक चाल चली और कहा कि हमें पद्मावती की एक झलक रावल दिखा दे ओर हम चले जायेंगे, रावल रतन सिंह जी ने परिस्थिति को समझते हुए यह निर्णय लिया की महारानी पद्मावती की सूरत पानी में दिखेगी एवम पानी से कांच में और कांच में खिलची महारानी पद्मावती की सूरत देखेगा।
लेकिन महावीर गोरा ने रावल रतन सिंह जी से कहा की खिलजी किसी भी तरह से महारानी को नहीं देखेगा , तब रावल रतन सिंह जी, महावीर गोरा से कहते हैं कि तुम राजनीति नहीं जानते हमे ऐसा करना होगा। लेकिन राजपूती गौरव इस बात को मानने के लिऐ तैयार नहीं था और गोरा महल छोड़ कर चले gaye।
बाद में खिलजी ने छल से रावल रतन सिंह को बंदी बना लिया और दिल्ली ले गया एवम चित्तौड़ पैगाम पहुंचाया की महारानी पद्मावती के आने पर ही वह रावल रतन सिंह जी को छोड़ेगा।
यह पैगाम जैसे ही चित्तौड़ पहुंचा महारानी पद्मावती स्वयं महावीर गोरा को डूंडने निकली, गोरा जो रतन सिंह जी के निर्णय से नाखुश थे वो एक पेड़ के नीचे बैठे थे, महारानी उनके पास गई और वो पत्र दिया, गोरा ने पत्र पड़ा और कहा कि रानी में तो तुच्छ हूं मैं राजनीति कया जानू।
तब महारानी पद्मावती ने कहा हे वीर यह समय नहीं है क्रोध करने का यदि एक पद्मावती दिल्ली गई तो पीछे पछताओगे जीते जी राजपूती शान पर कलंक लगाओगे इतना कह कर पदमावती गोरा के सामने छुक गई
तब गोरा कहते हैं है रानी यह क्या करती हों तुम गौरव हों सिसौदिया वंश को आभा हों जगदम्बा हों इस तरह किसी के सामने झुकना आपको शोभा नहीं देता।
फिर महावीर गोरा कहते हैं कि हे महारानी आप महल में जाइए जब तक रावल रतन सिंह महल में नपहुंच जाते तब तक स्वयं महाकाल से भी गोरा का मस्तक नही कटेगा।
अब गोरा एक योजना बनाते हैं जिस के तहत 1200 चित्तौड़ के योद्धा दिल्ली की ओर पालकी में बैठकर जाते हैं , वहा जाकर रावल रतन सिंह जी को छुड़ाते है और उन्हें चित्तौड़ रवाना करते हैं, महावीर गोरा वा बादल दोनों चाचा भतीजा अद्भुत साहस दिखाते इस तरह राजपूत वीर खिलजी की आंखों के सामने रतन सिंह जी को ले जाते हैं।
तो ऐसे थे महावीर गोरा जिनके सामने स्वयं मृत्यु भी हाथ जोड़ कर खड़ी रही।
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