लोक देवता कल्ला जी राठौड़

कल्ला जी राठौड़ एक राजपूत योद्धा थे। कल्ला जी  मेड़ता के । राव वीर जयमल जी राठौड़ के छोटे भाई आसासिंह के पुत्र थे।
भक्तिन मीराबाई इनकी बुआ थी।

कल्ला जी राठौड़ की बचपन से ही सामान्य शिक्षा के साथ साथ योगाभ्यास और ओषद विज्ञान में भी विशेष रुचि थी। प्रसिद्ध योगी भैरव नाथ जी से इन्होंने योग की शिक्षा प्राप्त की।

इसी समय मुगलों की अकबर सेना ने मेड़ता पर आक्रमण किया, वीर जयमल जी राठौड़ के नेतृत्व में आसासिंह जी और कल्ला जी राठौड़ ने डटकर अकबर की सेना सामना किया, परंतु विजय न मिलती देख वीर जयमल जी राठौड़ अपने परिवार को लेकर चित्तौड़ चले गए। यहां महाराणा उदय सिंह जी ने इनका स्वागत किया और इन्हे बदनौर की जागीर प्रदान की।

वीर कल्ला जी राठौड़ को रणढालपुर की जागीर देकर गुजरात की सीमा का क्षेत्र रक्षक नियुक्त किया।
 इनका विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की बेटी कृष्णा से तय हुआ। विवाह के समय महाराणा उदय सिंह जी ने संदेश पहुंचाया की अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया है आप अपनी सेना को लेकर यहां जल्द पंहुचे । कल्ला जी राठौड़ ने जल्द ही विवाह की रस्मों को पूरा किया और चित्तौड़ पहुंचे।
युद्ध का नेतृत्व वीर जयमल जी राठौड़ कर रहे थे, अकबर कई माह से किले के बाहर था, जिससे किले राशन भी समाप्त हो चला था , अतः अब समय था अंतिम युद्ध करने का, जयमल जी राठौड़ ने अपने सभी योद्धाओं से कहा कि अब कल अंतिम युद्ध होगा,l।
अगली सुबह सभी युद्ध के लिए तैयार थे, जयमल जी राठौड़ के पैर में चोट लगी हुई थी, तो उन्हें वीर कल्ला जी राठौड़ ने अपने कंधो पर बैठाया, युद्ध शुरू हुआ , कल्ला जी राठौड और जयमल जी राठौड़ को देख ऐसा लगता था मानो चार भुजाओं वाले भगवान युद्ध कर रहे हो ।चार हाथ दो पैर वाले देवता को युद्ध करते देख अकबर सहित उसकी पूरी सेना भय से कांप गई, युद्ध में कल्ला जी राठौड़ का सिर कट गया लेकिन कई समय तक उनका धड़ लड़ता रहा और अंत में कल्ला जी राठौड़ अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

कल्ला जी राठौड़ को लोकदेवता माना जाता है, उन्हें लोग शेषनाग का अवतार मानते हैं।


टिप्पणियाँ

  1. कल्ला जी राठौड़ इतिहास में सदैव अमर रहेंगे और सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहेंगे

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