वीर पत्ता जी चुंडावत और जयमल जी राठौड़ का

वीर पत्ता जी चुंडावत और जयमल जी राठौड़

उस वक्त राणा उदय सिंह जी चित्तौड़ के राणा थे, अकबर ने निर्णय लिया कि वह चित्तौड़ पर आक्रमण करेगा, और  60000 सैनिकों के साथ बड़ दिया चित्तौड़ की ओर।
इस बात की खबर जब चित्तौड़ पहुंची तो वहां के ठाकुरों ने और वरिष्ठ जनों ने निर्णय लिया कि राणा उदय सिंह जी अपने परिवार के साथ कुम्भलगढ जाए एवम् अपनी सेना मजबूत करें, राणा उदय सिंह जी इस तरह जानें को तैयार नहीं थे, लेकिन अपने देश के लिए उन्हें जाना पड़ा।

अब वीर जयमल जी राठौड़ को चित्तौड़ का सेना नायक बनाया गया और उनका साथ देने के लिए वीर पत्ता जी चुंडावत को चुना गया।
अकबर कई दिनों से किले के बाहर बैठा था, अकबर को किले की सारी जानकारी मिल रही थी, तो उसे पता चला कि युद्ध की जिम्मेदारी जयमल जी राठौड़ को मिली हैं तो उसने उन्हें लालच देना चाहा, और एक पत्र भिजवाया जिसमे लिखा था कि आप यदि चित्तौड़ को हमारे अधिन कर दे तो में आपको आपकी खोई हुई जागीर भी लोटा दूंगा एवम् मेवाड़ का प्रमुख भीं बना दूंगा।

लेकिन जयमल जी राठौड़ ने अकबर का यह प्रलोभन स्वीकार नहीं किया और पत्र में लिखा कि मैं अपने स्वामी के साथ गद्दारी नहीं कर सकता उन्होंने मुझे चित्तौड़ का सेनापति बनाया है मैं मरते दम तक इसकी रक्षा करूंगा।

एक रात को जयमल जी राठौड़ किले की दीवार सही करवा रहें थे, तभी अकबर की नजर उन पर पड़ी और अकबर ने उन पर गोली चलवाई, जो जयमल जी राठौड़ के पैर में लगी और वह घायल हों गए।
बाद में पता चला कि राशन भी खत्म हो रहा और अब युद्ध करना होगा, इस समय चित्तौड़ दुर्ग में 8000 राजपूत योद्धा थे, एवम् बाहर  60000 की अकबर की सेना , लेकिन अब युद्ध करना था, रात को क्षत्रानियो ने जोहर की तैयार कर ली थी, जोहर कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर ली थी, किले के बाहर अकबर सेना को पता चल गया था कि जोहर की तैयारी हों गई है कल सुबह युद्ध होगा।
सुबह सभी दरवाजे के खुलने का इंतजार करने लगे, वीर जयमल जी राठौड़ के पैर में चोट लगी हुई थी जिसके कारण वह घोड़े पर नहीं बैठ सकते थे, तब वीर कल्ला जी ने उन्हें अपने कन्धे पर बैठाया।
, दरवाजा खुला राजपूत वीर बाहर आए और अकबर की सेना पर काल की तरह टूट पड़े, वीर जयमल जी राठौड़ और कल्ला जी जिस प्रकार शत्रुओं पर प्रहार कर रहे थे उसे देख अकबर की सेना डर गईं एवम भागने लगीं और स्वयं अकबर भी चकित हो गया।
अकबर की सेना में हाथी भी थे, अकबर कहता था कि 1 हाथी 500 घुड़सवार के बराबर है, लेकिन अकबर के इन्ही हाथियों पर काल की तरह टूट पड़े वीर पत्ता जी चुड़ावत , उन्होंने अकबर के कई हाथियों और सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, बाद में अकबर ने उनके सामने एक मतवाला पागल हाथी भेज दिया और साहस के साथ लड़ते लड़ते वीर पत्ता जी चुंडावत वीरगति को प्राप्त हुए।
8000 राजपूत वीरों ने 60000 सैनिकों वाली अकबर सेना को नाकों चने चबवाये, युद्ध में 48000योद्धा मारे गए, जिनमे सभी 8000 राजपूत योद्धा भी थे। 
बाद में अकबर ने भी राजपूत योद्धाओं की वीरता ,साहस की प्रशंसा की।
इस युद्ध के बाद जब अकबर चित्तौड़ दुर्ग में पहुंचा तो उसे कुछ नहीं मिला तो उसने चित्तौड़ में कतले आम शुरू कर दिया और कई मासूम लोगो की हत्या कर दी और हम ऐसे व्यक्ति को महान बताते है।

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