प्रशंशा : लाभकारी या हानिकारक
प्रशंशा व्यक्ति को जीवन में आगे भी बढ़ाती हैं तो कई बार प्रशंशा के कारण व्यक्ति में अभिमान आ जाता है जिसके कारण वह विनाश की ओर बड़ने लगता हैं। जैसे हम उदाहरण के लिए माने कि एक व्यक्ति के बारे में उसके मित्र कहते हैं कि हमारा मित्र कभी झूठ नहीं बोलता, कभी गाली नहीं देता , इस तरह उसकी प्रशंशा करते हैं, अब इन बातों को ध्यान में रखकर वह व्यक्ति सोचे कि मेरे मित्र सब से मेरी प्रशंसा करते हैं तो मुझे ऐसा बनना चाहिए। यदि व्यक्ति के मन में ये भाव जागृत हो गए तो व्यक्ति अपने जीवन में जरूर आगे बड़ेगा।
लेकिन अब यदि उस व्यक्ति को इसी बात का अहंकार आ जाए कि देखो सब लोग मेरी प्रशंशा करते हैं , तारीफ करते हैं, उसके जैसा अच्छा कोई नहीं है ,तो इस तरह की सोच व्यक्ति को विनाश की ओर अग्रसर करती है।
इस तरह प्रशंसा पाकर व्यक्ति को अपने अंदर सुधार करना चाहिए, स्वयं के चरित्र को ओर निखारना चाहिए, न कि अहंकार में आकर स्वयं का विनाश कर लेना चाहिए।
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